सफूरा जरगर प्रेग्नेंट है, इसीलिए उसे जमानत चाहिए। कल को कोई आतंकवादी अपना माथा फोड़ लेगा और कहेगा कि मुझे छोड़ दो तो क्या उसे छोड़ दिया जाएगा?

 
पिछले कुछ दिनों में दसियों ऐसे पोस्ट्स देखे हैं, जिनमें लिखा है कि एक हथिनी और गाय की हत्या से दुःखी लोग सफूरा के लिए आवाज़ नहीं उठा रहे। उन निर्दोष जानवरों ने दंगे भड़काए थे क्या? "दिल्ली तेरे ख़ून से इंकलाब आएगा"- ये वाला नारा लगाया था क्या? बातें करेंगे ख़ून-ख़राबे की और चाहेंगे कि VIP ट्रीटमेंट मिले तो कैसे चलेगा? अपराधी है, अपराध किया है तो क़ानून की सज़ा का पालन करना पड़ेगा। सफूरा हो या जगीरा, जब लोगों को भड़काने में दिक्कत नहीं है तो जेल जाने में क्यों?

असल में सफूरा जरगर कई 'विक्टिम कार्ड्स' की धारक है। पहली, वो महिला है। वामपंथी गैंग में महिलाओं के अधिकारों को विशेष सम्मान देने का दिखावा किया जाता है, भले ही गुट के अधिकतर पुरुष यौन शोषण के आरोपित हों। दूसरा, वो मुस्लिम है। मुसलमान होते ही आपको सबसे बड़ा प्रीमियम विक्टिम कार्ड मिल जाता है। लेकिन ये महोदया प्रेग्नेंट भी है, तो ये अल्ट्रा प्रीमियम विक्टिम कार्ड बन गया। एमनेस्टी कह रहा है कि उसे कोरोना हो जाएगा। तो क्या उसे छोड़ना बाकी कैदियों के अधिकारों का हनन नहीं होगा? सफूरा को कोरोना होने के डर से छोड़ दिया जाए, बाकी बन्द रहें अंदर? यही Equality है क्या वामपंथियों की?

सफूरा वैसे भी अरुंधति रॉय की पर्सनली ट्रेंड मुजाहिद्दीन है। रैलियों में अमित शाह को आतंकवादी बताती रही है। जिस वात्सल्य से अरुंधति उसे नारा लगाते हुए देख रही थी, उससे तो यही लगता है। उस पर देशद्रोह, हथियार रखने, हत्या, हत्या के प्रयास, हिंसा भड़काने, दंगे भड़काने और दो समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाने के आरोप हैं। क्या ऐसे अपराधी को सिर्फ इसीलिए खुला छोड़ दिया जाए क्योंकि उसके पास फार लेफ्ट बैंक का अल्ट्रा प्रीमियम विक्टिम कार्ड है? सफूरा और उसके साथियों के घर से तमंचे, पेट्रोल बम, एसिड बोतल और पत्थर मिले हैं। जिसे सफूरा के लिए सहानुभूति है वो उस पत्थर को निगल कर एसिड पी जाए और पेट्रोल बम को अपने स्थान विशेष में फोड़ के उसमें तमंचा डाल ले। अरे, ये सब प्रेम को बढ़ावा दें वाली चीजें हैं न?

क्या कहा था वो अली फजल ने? कि शुरू मजबूरी में किए थे, अब मजा आ रहा है। तो लो मजा। अब वही अली फजल सफूरा की प्रेग्नेंसी का रोना रोते हुए उसकी रिहाई की माँग कर रहा है। अगर लाखों लोगों और स्कूली बच्चों को रोज 4-4 घण्टे जाम में फँसाना मजा था तो अब लो मजा। इन्होंने दिल्ली को 3 महीने बंधक बना कर रखा है। मैं तो कहता हूँ कि बच्चे के जन्म के तुरंत बाद सफूरा को फाँसी पर लटका दो। इनलोगों के कारण कई मरीजों की ज़िंदगियाँ गई हैं जाम में फँस कर। इसके बाद दंगे हुए। उसमें 50 से अधिक जानें गईं। महिलाओं और बच्चों को सड़क जाम कराने के लिए जमा करने समय ये ध्यान रखना चाहिए था न कि पेट में बच्चा है?

और तिहाड़ में तो अच्छी व्यवस्था है बच्चों के देखभाल की। 6 वर्ष तक उसे माँ से अलग नहीं किया जा सकता, ऐसा भारत सरकार का नियम है। इसीलिए, वहीं जन्म होता है। बच्चों के खिलौनों और झूलों से लेकर शिक्षा तक की व्यवस्था की जाती है। उन्हें स्कूल में दाखिला दिलाया जा सकता है। खाने-पीने की व्यवस्था की जाती है। 2008-13 तक 24 बच्चों के जन्म हुए वहाँ। फिर आतंकी सफूरा में क्या स्पेशल है कि उसे छोड़ दिया जाए? उस असंवेदनशील महिला ने जब अपने पेट में पल रहे बच्चे की भविष्य की चिंता न करते हुए दंगे कराए, तो इसका दोष उसे दो न। सरकार तो सारी व्यवस्था दे रही है फिर भी सरकार की ही आलोचना क्यों?

सफूरा जरगर का शौहर सामने नहीं आना चाहता है। अगर ग़लत नहीं है बीवी तो उस आदमी को उसके साथ सार्वजनिक रूप से खड़ा होने में भी दिक्कत है। राजीव गाँधी की हत्या में शामिल लिट्टे की नलिनी प्रेग्नेंट थी। जेल में बच्चा हुआ। बंगाल में RSS से जुड़े पति-पत्नी की हत्या की गई, वो महिला भी प्रेग्नेंट थी- सफूरा गैंग वालों ने कुछ बोला क्या? अरुंधति स्वरा तो पैंतरे आजमा कर बचते रहेगी, उनके कुत्ते बनोगे तो ऐसे ही रेले जाओगे। इसीलिए ये एक सन्देश की तरह काम करेगा, उन सभी छात्रों के लिए जो वामपंथी आकाओं के चक्कर में आकर आतंकी वाली हरकतें करते हैं।

लगभग एक दशक तक पुलिस की रोजाना पिटाई और कैंसर की बीमारी से जूझती साध्वी प्रज्ञा का मजाक बनाने वालो, अब तुम पर आई तो विक्टिम कार्ड याद आ रहा है? कल को उमर खालिद भी गिरफ़्तार होगा। बड़े आका लोग भी अपने पाले वकीलों की छाया में कब तक बचेंगे? इसीलिए रुदन-क्रंदन तब कर लिए भी बचा रहना चाहिए। दिल्ली दंगे का हिस्साब हो रहा है। जनता 100 दिन तदपि है, उसका न्याय हो रहा है। लाखों गाड़ियों को डाइवर्ट कर के लाखों लोगों के जनजीवन से खेलने वालों का हिसाब हो रहा है। इन ब्रीफ, मोटाभाई वर्किंग फ्रॉम होम।


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