सरकार को अब लॉक डाउन पूरी तरह हटा देना चाहिए। जैसे नॉर्मल देश मे सब खुला रहता है। वैसे ही, सब कुछ चलना चाहिए। कोई राहत पैकेज नही। ना कोरोना होने पर सोसायटी सील करनी चाहिए, ना ही कोरोना का पता चलते ही एम्बुलेंस लेकर भाग जाना चाहिए। मतलब कोरोना क्या है ? भुला देना चाहिए।जिसे कोरोना हो वो अपना इलाज खुद करवाये।
क्योकि जो पैदा हुआ है खुद को जिंदा रखने का,पेट भरने का पहला कर्तव्य उसका है। उसके बाद सरकार और अन्य को दोष दे।
कब तक 138 करोड़ की भीड़ को कोई प्रशासन कोई पुलिस भेड़-बकरियों की तरह हांक सकती है।
समाज को योगदान देने वाले लोगों के टैक्स और अनुदान का पैसा, इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा, सड़को, हॉस्पिटल और दूसरे रोजगार देने वाले कामों में किया जाय, जो एक सरकार को करना चाहिए।
जिन लोंगो को 2 महीने बाद भी समझ नही आता कि बीमारी कितनी खतरनाक है। देश की स्थिति कितनी खराब है। उनका कुछ भला नहीं होने वाला।
कोई बीयर पार्टी कर रहा है, कोई बर्थडे पार्टी कर रहा है तो कोई मोमोज और समोसे ले रहे हैं लाइन लगा के।
कोई ट्रेन मिलने के बाद भी बोल रहे है हमारे लिये खाना पानी की कोई व्यवस्था नही है। क्यो कोरोना से पहले 10 लीटर पानी रखने की जगह भी नही थी क्या तुम्हारे पास, जो ट्रेन में मुंह उठा के आ गए। पता है कि वो रुकेगी नही ओर कहां रूकेगी। बारात में जा रहे हो क्या ? ट्रेन में नींबू पानी और पकौड़े मिलेंगे। इनके मुँह में निवाला डाल पेट मे भी डाल दोगे तो सुबह बोलेंगे कि,....
खाने में कुछ गड़बड़ था पेट साफ नही हुआ है।
छोड़ दीजिए सबको जो पैदा हुआ है उसे खुद पेट भरना,और खुद को बचाना आना चाहिए। जब सरकारें नही थी तो मनुष्य जंगल मे जानवरो के बीच भी खुद को जिंदा रख पाया था क्योकि वो आत्मनिर्भर बनना चाहता था। जैसे-जैसे सरकारों ने फ्री चीजें, बांटने शुरू की वैसे वैसे लोग सरकार पर ज्यादा आश्रित होने लग गए हैं। कुछ लोग गरीबों के नाम से खा पी के अपनी रोटियां सेक रहे हैं l
यहाँ सब सरकार पर निर्भर है। सरकार ने भी आपको बता दिया है कि आप स्वाबलंबी बने। इतने रिसोर्सेज सरकार के पास नहीं है कि आपकी सारी जरूरतों का हिसाब रख सकें।जब आप अपना और अपनी जरूरतों का ध्यान नहीं रख सकते तो, सरकार कैसे अपनी भी और आपकी भी जरूरतों का ध्यान रखेगी।
कुछ समय से यह देखा जा रहा है, सामान्यतः लोग हर बात के लिए सरकार को दोषी ठहरा देते हैं क्या आपकी जिम्मेदारी नहीं है, आप अपना ध्यान रखें और सरकार का भी ध्यान रखें l जब सरकार ने आपको जनधन अकाउंट व राशन कार्ड बनाने के लिए कहा था तथा उसके साथ आधार लिंक करने को कहा तो आपने ऐसा नहीं होने दिया और निजता का अधिकार की दुहाई देकर काम रोक दिया अब आप चाहते हैं कि सरकार सीधे आपके खाते में पैसे भेजें, राशन दे, भेजे तो कैसे भेजें आप ही बताओ?
यदि किसी व्यक्ति या संस्था को राशन व पैसा बांटने को दिया जाए तो 85% वह खुद खा जाता है हेराफेरी कर जाता है। केवल 15% लोगों तक ही राहत पहुंच पाती है।
जो बुद्धिजीवी सड़कों पर चल रहे मजदूरों की दुहाई दे रहे हैं क्या उनको पता नहीं है? *सरकार ने कहा था जो जहां है वही रहेगा* और वही लोग वहां पर आपसी भाईचारे से उनकी व्यवस्था करेंगे या *राज्य सरकार या कंपनी द्वारा, ठेकेदार द्वारा,या उद्योग द्वारा,या विभाग द्वारा व्यवस्था की जाएगी ।*
फिर किसके कहने से यह लोग वहां से बाहर निकले।
*क्या किसी नेता ने किसी कंपनी, किसी विभाग या किसी सोसाइटी से ऐसा कोई प्रश्न किया कि इन लोगों को वहां से क्यों निकाल दिया गया।*
नहीं, बस दोष सरकार को देना है केवल। कुछ करना तो है नहीं, केवल दोष दे दो और किनारे हो जाओ।
*पिछले 100 साल में ऐसी महामारी कभी नहीं आई. न किसी को इस प्रकार की परिस्थिति का कोई अनुभव है।*
देश के सामने कितनी सामाजिक वह आर्थिक समस्याएं विकराल रुप में खड़ी हो गई है। आप सारी व्यवस्था में खामी निकालकर अफरा तफरी का माहौल खड़ा करना चाहते हैं केवल! अपनी प्रसिद्धि और राज्य सत्ता के लिए। यदि आपको कुछ करना ही है तो अभी भी समय है आप बहुत कुछ कर सकते हैं।
*जो लोग निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हैं उसी प्रकार आप भी कर सकते हैं।*
तभी तो लोग आपको पहचानेंगे। आप कुछ अच्छे कार्य करिए तो सही। जिनके लिए आप आवाज उठा रहे हैं उनके खाने पीने व जिंदा रहने की व्यवस्था करें, न कि केवल सरकार का विरोध करें।
मनुष्यता भी तो कोई चीज है l दया भाव ही मनुष्य को अन्य जीव-जंतुओं से श्रेष्ठ बनाता है।
*दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान,*
*तुलसी दया ना छोड़िए जब लग घट में प्राण।*
आपको जनसंख्या का रजिस्टर पूर्ण करने के लिए कहा गया ताकि पता लग सके कि हमारी कितनी युवा शक्ति है कितना वृद्ध लोग हैं, कितनी जनसंख्या में वृद्धि हुई है,एक प्रदेश के कितने लोग दूसरे राज्यों में काम कर रहे हैं,मूल निवासी कहां के हैं, कितने लोगों की क्या-क्या जरूरतें हो सकती हैं ।ताकि किस प्रकार उनके लिए रोजगार की,आवास की व्यवस्था की जा सके!
आप उसमें सहयोग करने के बजाय धरना, प्रदर्शन और विरोध करेंगे और अब सरकार को दोष दे रहे हैं।
मैं रहूं या कोई और जो लापरवाही करेगा उसे जाने दीजिये। यह उसकी भी तो जिम्मेदारी है कि अपने को जिंदा रखे और स्वस्थ रखे।
*समझ गए तो ठीक वरना भोगो।*
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