WHO का कुकर्म एक बार फिर साबित हो गया है

91:- "DISEASE FREE WORLD"     
          "CORONA BUSINESS"
  WHO का कुकर्म एक बार फिर साबित हो गया है। एक ख़बर:-"WHO OFFERED $ 20 MILLION BRIBE TO SEE COVID-19 MEDICINE POISONED- MADAGASCAR PRESIDENT. THIS IS NOT MY IDEA SUGGESTED BY THE LEADER OF A VILLAGE IN A RURAL PART OF AFRICA. AND THIS SHOWS US THE BEST IDEA OF ALL- ASK THE PEOPLE TO SOLVE THE PROBLEM FOR THEMSELVES. PEOPLE WHO LIVE IN A COMMUNITY KNOW THEIR WAY OF LIFE-STORY PG3.(मैडागास्कर द्वारा कोविड-19 की ईलाज के लिए बनाई गई घरेलू (आयूर्वेदिक) दवाई पर रोक लगाने के लिए WHO ने वहां के राष्ट्रपति ANDRY RAJOELINA को 20 मिलियन डॉलर की रक़म "घूस" में देने की पेशकश की।)
   इसके पहले भी 2009 में H1N1 वायरस (जिससे SWINE FLU फैला था) के संदर्भ में PACE (PARLIAMENTARY ASSEMBLY COMMITTEE OF EUROPE) ने WHO को चोर और लुटेरा घोषित किया था। क्योंकि उस समय इस "वर्ल्ड हेल्थ (हरामी) आर्गनाइजेशन" (WHO) ने $ 18 मिलीयन का घोटाला/घपला किया था। जिसका फांडाफोड़ दो जर्नलिस्टों (SHERYL ATTKISON और JON RAPPOPORT) ने किया था। दूसरे 195 अंधभक्त देशों की तरह हमारा भारत भी समाज की सेहत के दुश्मन के PROTOCOL को मानकर कोरोनावायरस पीड़ितों का क़त्ल आम कर रहे हैं। और इसके बदले में हमारे केंद्रिय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन को WHO में एक पद मिल गया है।
बहरहाल ! मेरे प्यारे भोले-भाले मित्रो, किसी भी वायरल डीज़ीज़ से डरने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है बल्कि आपको अपने IMMUNITY POWER को बढ़ा कर  बचाव करने की कोशिश करें।
  FRESH AIR और SUNLIGHT और NATURAL VITAMIN C की भरपूर मात्रा लें और सुरक्षित रहें निडर रहें।
  शरीर का HIGH TEMPERATURE वायरस का दुशमन। लेकिन उन हाई क्वालिफाइड जाहिल वह गंवार डॉक्टर सबसे पहले मरीज़ के बुखार को ही नार्मल करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो डॉक्टर ने बुखार को नार्मल करके वायरस को बचा लिया और मरीज़ को मौत के क़रीब कर दिया।ये सारा काम एक सोची समझी रणनीति और साज़िश के तहत किया जा रहा है।
  हम सब NATURE द्वारा NATURAL ITEMS से बने हैं।इस हालत में हमें जब भी कोई बीमारी या तकलीफ़ हो जाती है तो उसका निदान, बचाव और ईलाज सिर्फ और सिर्फ नेचुरल चीज़ों और तरीकों से ही शत् प्रतिशत मुमकिन है।
   NATURAL यानी GOD MADE ITEMS से किसी वायरल डिज़ीज़ का ईलाज शत प्रतिशत संभव है।
   NO MEDICATION ONLY EDUCATION, VIRUS ब्लड में रहता ही नहीं तो दवा से कैसे मारोगे ?
वायरस कभी भी ब्लड में रहता ही नहीं है,ये हमारे शरीर में दाख़िल होकर TRAVEL करते हुए CELL के पहले दूसरे नहीं बल्कि तीसरे LAYER में जाकर छुपकर सुरक्षित हो जाता है। जहां पर LIVING BEING की तरह MULTIPLY करता है। इसी दौरान हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता वायरस से लड़ाई शुरू कर देता है और उसी क्रम में बाडी टेम्परेचर हाई हो जाता है।इस दौरान एक समय आएगा जब वायरस CELL से बाहर ब्लड में आएगा ही जहां ब्लड का उच्च तापमान वायरस का क़त्ल आम कर देगा।अब आप ही बताइए इसमें दवा की ज़रूरत ही कहां है, जबकि कोई दवा CELL के भीतर पहुंचता ही नहीं है।
  REMDESIVIR वो दवा है जो EBOLA में भी परीक्षण किया गया था और बुरी तरह नाकाम रहा।अब एकबार फिर इसे कोरोनावायरस केलिए प्रयोग किया जा रहा है, यानी मरीज़ की मौत का सामान तैयार किया जा रहा है। ANTIMALARIAL दवा HYDROXYCHLOROQUIN कोरोनावायरस के मरीजों के ऊपर आज़माया जा रहा है।ये बेगैरतों की टोली इन्सानी ज़िन्दगी को GUINEA PIG समझते हैं।ज़रा सोचिए, मलेरिया PARASITE से होता है। PARASITE और VIRUS में क्या कोई एकरूपता है? नहीं, तो फिर उन गंवार डॉक्टरों को समझ नहीं आ रहा क्या? ऐसा नहीं है, बल्कि ये तो फार्मास्युटिकल कंपनियों की रणनीति ही यही है, ताकि उनका व्यापार और मुनाफा चलता रहे। ANTIBIOTICS का वायरस से क्या नाता हो सकता है। कोई लगाव ही नहीं है तो फिर कोरोनावायरस पीड़ितों को क्यों दिया जा रहा है?  ऊपर वर्णित दवाएं और ANTI HIV DRUGS & BCG VACCINE केवल EXPERIMENTAL DRUGS यानी प्रयोगात्मक तौर पर आज़मा कर देखा जा रहा है। इन्सानियत इतना गिर जाएगा,वो भी सिर्फ "बिज़नेस" केलिए?
यानी आप मानव नहीं GUINEA PIG हो इसीलिए।
इन दवाओं को आप पर आज़माया जा रहा है फिर "लगा तो तीर नहीं तो तुक्का।"
डाक्टरों की वेष-भूषा ऐसी जैसे डरावने ASTRONAUTS, मतलब किसी नाटक के कैरेक्टर
इतनी मौतें उसी ऐलोपैथी ईलाज का नतीजा, वायरस की दवा या टीका बना ही नहीं।और न ही बन सकती है।
PHARMA COMPANIES का ढोंग है।World HEALTH ORGANIZATION की सरपरस्ती में विश्व के 195 देश WHO की ग़ुलामी करके हज़ारों लाखों लोगों को मौत के घाट उतार रही हैं। कोरोनावायरस पीड़ितों की एक एक डेड बॉडी अस्पतालों केलिए "बीयरर चेक" सामान हैं। कोरोनावायरस संक्रमित मरीज़ अगर किसी अस्पताल में भर्ती हुआ तो उस अस्पताल को प्रति रोगी ₹ 13000/- बतौर REWARD फार्मास्युटिकल कंपनियों की ओर से मिलता है। और इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि कोई मरीज़ अगर VENTILATOR तक पहुंचता है तो फिर उसके ज़िन्दा वापस लौटने के चांसेज नगण्य हो जाती हैं और उस एक की मृत्यु हो जाने पर उस अस्पताल को जितनी फंडिंग दी जाती है उसे सुनकर बेहोश हो जाएंगे। कुल US $ 39000/प्रति डेड बॉडी। यानी LOOT LO OFFER चल रहा है। अब इसमें डॉक्टरों को दोषी करार देने की कोई ज़रूरत नहीं, उन्हें तो शतरंज का मोहरा बना दिया गया है। अगर वो अपनी ज़बान खोलने की कोशिश की तो नौकरी से निकाले जाएंगे,सर्टीफिकेट रद्द कर दी जाएगी।गैम्बलर कहीं और बैठा है।
   ये सारा गेम प्लान फार्मास्युटिकल कंपनियों का है, और WHO जैसी संस्था (जो पूरी दुनिया क स्वास्थ्य का ज़िम्मेदार है) उन कंपनियों की मुट्ठी में है। और इस तरह सिर्फ और सिर्फ दवा,मास्क, सैनिटाइजर, टेस्ट किट,पी पी ई, वैन्टीलेटर इत्यादि का अरबों खरबों डालर का व्यापार होगा। इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि कितने लोगों की मौत हो गई।ये तो चाहते हैं कि दुनिया की आबादी कम से कम पंद्रह प्रतिशत घट जाए।
   मैं आपको 1975 के उस दौर में ले चलता हूं जहां विश्व की टाप टेन कंपनियों में से दूसरे नंबर की कंपनी MERCK की बात करेंगे। इस कंपनी के CEO  जिसका नाम HENRY GODSON था। उसका कहना था:-"उनके दिल में एक ही तकलीफ़ है कि दुनिया में सिर्फ़ "मरीज़" ही उनकी कंपनी की दवा इस्तेमाल कर पाते हैं। वो उस दिन का सपना देख रहे थे जब वो दुनिया के सेहतमंद लोगों को भी अपनी दवा बेच  सकेंगे।" इसका मतलब क्या है?वो चाहते थे कि सारी दुनिया बीमार पड़ जाए या बीमार न भी पड़े, फिर भी उनके प्रोडक्ट्स ज़रूर बिकें।"
   LOCKDOWN NO SOLUTION, सच्चाई यही है। सबसे पहले तो ये पता कीजिए कि ये "ज्ञान" किसने दिया। WHO की चीफ साइंटिस्ट MRS SWAMINATHAN ने NDTV के RAVISH KUMAR के साथ एक इंटरव्यू में यह क़बूल किया कि LOCKDOWN का सुझाव WHO ने नहीं दिया। फिर किसने कहा, "CHINA" ने तो नहीं दिया। बिल्कुल सही समझे आप, लेकिन अभी भी आप ग़लत हो।ये सुझाव WHO ने ही दिया, तो झूठ बोलने का क्या मतलब?
  SOCIAL DISTSNCING भी कोई SOLUTION नहीं है।आप ख़ुद देखिए,क्या ऐसा करने से कोरोना वायरस ख़त्म हो गया?
  ISOLATION भी कोई SOLUTION नहीं है। आपने पूरी जनता को उनके घरों में क़ैद कर दिया। ऐसा नहीं है कि घरों में वायरस नहीं है, ये तो हर जगह मौजूद है। फिर ISOLATION का क्या मतलब!
   FACEMASK IS JUST LIKE A DIAPER, जी हां बिल्कुल सही समझे आप।मास्क लगाना केवल हेल्थ वर्करों (डॉक्टरों, नर्सों वगैरह) केलिए ज़रूरी है।आम जनता को तभी लगाना चाहिए जब वो किसी पोजीटिव मरीज़ के संपर्क में आने वाले हैं।
   SANITIZER तो आपकी IMMUNITY POWER को कमज़ोर कर रही है। इसमें लगभग अस्सी प्रतिशत अल्कोहल होता है। इसे लगाते ही आपके चमड़ी को भेदते हुए रक्त में पहुंच जाता है।ये आपके DENDRITIC CELLS को क्षति पहुंचाती है और आप के IMMUNITY POWER को घटाती है। फिर आप कभी भी किसी भी वायरल डीज़ीज़ या किसी अन्य बीमारियों से बच नहीं पाएंगे। यानी SANITIZER इस्तेमाल कराकर आप को बीमार बनाने का काम किया जा रहा है।WHO ने सैनिटाइजर के दो फार्मूले बताये हैं। पहला जिसमें 80% तक इथेनॉल हो, 0.125% तक हाइड्रोजन पेरोक्साइड और 1.45% ग्लिसराल हो। दूसरे फार्मूले के तहत इसमें इथेनॉल की जगह 75% आइसोप्रोपाइल अल्कोहल हो सकती है,बाकी घटक पहले फार्मूले की तरह ही बने रहेंगे
अमेरिका के "सेंटर फॉर डीज़ीज़ कंट्रोल" के अनुसार, "हाथों की सफाई से सांस से जुड़े संक्रमण का ख़तरा 21% तक घट जाता है।"
   PHARMCEUTICAL COMPANIES मीलियन ट्रीलीयन डालर की कमाई में जुटी हैं, वो भी EXPERIMENTAL DRUGS प्रयोग करके।क्योंकि आर एन ए वायरस की कोई दवा बन नहीं सकती, तो क्या ये कोरोनावायरस पीड़ित रोगियों को GUINEA PIG समझती हैं? आपने देखा होगा कि ऐसा एक भी कोरोनावायरस पीड़ित अपने घर में नहीं मरा, बल्कि ईलाज के दौरान अस्पताल में उसकी मृत्यु हुई।
  रूह को कंपकंपा देने वाली एक ख़बर देता हूं।जब कोरोना वायरस पोजीटिव मरीज़ अस्पताल में भर्ती होता है तो उस अस्पताल को प्रति रोगी ₹ 13000/- का "REWARD"मिलता है। और ईलाज के दौरान कोई मरीज़ अगर VENTILATOR पर चला गया तो वहां से ज़िंदा वापस लौटने की उम्मीद नगन्य है।उस अस्पताल को इस के लिए प्रति रोगी USD $ 39000 बतौर REWARD दिया जाता है।(इस बात का भांडा फोड़ एक पाकिस्तानी डॉक्टर अबरार कुरैशी ने अपने एक वीडियो संदेश में कही है।)
 LEONARD HOROWITZ ने भी अपने एक वीडियो   इंटरव्यू में किया था कि जिस किसी भी अस्पताल में वायरल डीज़ीज़ से पीड़ित रोगी भर्ती होता है तो कहीं से उस अस्पताल को "फंडिंग दी जाती है। उनकी गणना वायरल डीज़ीज़ पर रिसर्च कर रहे टाप टेन साइंटिस्ट में की जाती है। उनकी पुस्तक का नाम "EMERGING VIRUS" है।)
  जागो ईंडिया जागो क्योंकि सरकार आपको आपके घर में क़ैदी बनाने जा रही है। आख़िर ये कोरोनावायरस एक फ्लू ही तो है, जिस को ILI (INFLUENZA LIKE ILLNESS) की श्रेणी में रखा गया है।तो ऐसा क्यों किया जा रहा है कि कोई कोरोनावायरस पोजीटिव मरीज़ का पता चलता है तो उसको घर से इस तरह उठा कर अस्पताल ले जाया जाता है मानो वो कोई "मुजरिम है। आख़िर क्यों नहीं उसे यह ईख़्तियार दिया जाता है कि वो अपनी मर्ज़ी से किसी भी प्राईवेट क्लीनिक में किसी यूनानी चिकित्सक, आयूर्वेदिक चिकित्सक, होमियोपैथिक डॉक्टर से संपर्क कर के अपना ईलाज कराए।
   HERD IMMUNITY के बारे में जानकारी प्राप्त करें। JOHN HOPKINS BLOOMBERG SCHOOL OF PUBLIC HEALTH के अनुसार,"जब अधिकांश आबादी एक संक्रामक बीमारी के प्रति IMMUNE हो जाती है तो यह INDIRECT PROTECTION प्रदान करता है।"इसे ही HERD IMMUNITY कहा जाता है। ये उनलोगों को भी PROTECTION प्रदान करता है जो बीमारी से संक्रमित नहीं हैं।
   R 0(आर नाट) यह एक MATHEMATICAL TERM है, जो ये बताता है कि एक संक्रामक बीमारी कितना संक्रामक है।इसे REPRODUCTION NUMBER (प्रजनन संख्या) कहते हैं। जैसे ही संक्रमण किसी आदमी में पहुंचता है यह ख़ुद को REPRODUCE कर लेता है।R 0 उन लोगों की औसत संख्या बताता है जो एक संक्रमित आदमी से संक्रमित हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर किसी बीमारी का R 0 18 है तो उससे संक्रमित आदमी औसतन 18 लोगों को संक्रमित करेगा।
   ये बहुत ही बड़ा सवाल है, किसी बड़ी साज़िश की "बू" आती है तो आप भी महसूस करें।
 ISOLATION CENTRE भी जेल या क़ैदख़ाना से क्या कम है।
HAKEEM MD ABU RIZWAN
          BUMS,hons.(BU)
        UNANI PHYSICIAN
Spl in LIFESTYLE DISEASES
UNANI MEDICINES RESEARCH CENTRE SHRUTI CHOWK PURANI BASTI ROAD JUGSALAI JAMSHEDPUR JHARKHANDI INDIA.
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