वे रास्तो पर चले ।
वे पटरीयों पर चले ।
वे पैदल चले ।
वे सायकिल से चले ।
वे बेहद थके थे ,
खुद अपनी लाशो को
अपने पैरो पर उठाकर चले ।
वे भूखे थे
लाठीय़ाँ खाकर चले ।
वे प्यासे थे
आंसुओ को पी कर चले ।
वे बच्चो को सर पर उठाकर चले
वे बूढों को पीठ पर बिठाकर चले
वे अपनी घर सारा ही
थैलीयों में भर कर चले ।
वे मिलो चले ।
वे दिनो चले ।
न् जाने कहासे सीक ली ऊँहोने
तकनीक गायब हो जाने की ,
कि वे चलते तो गए दिनदहाडे
पर हुक्मरानो को दिखाई न दिये ।
वे दुनिया की छाती पर
अपने पैर गड़ाकर चले..
वे अपनी नसलों को बचाकर चले ...
वे इतिहास को काला लिखते चले।
वे भविष्य की ओर देखते चलें।
वे रेंगते, रोते, घिसटते,
...गिरते ..मरते ......बस चले....
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