आजकल के लड़के
नौकरी लगने के तुरंत बाद
शादी करके पत्नी को
नौकरी वाले शहर में ले जाते हैं , तथा
सारा पढ़ाई का कर्ज , खेती का काम
घर की जिम्मेदारियाँ , सब झंझट
माता-पिता के पास छोड़ जाते हैं.
वो सबसे पहले शहर में
प्लाट या फ्लैट लेने की सोचते हैं, तथा
माता-पिता की ओर कम ध्यान देते हैं
जो बहुत दुखदाई है.
फेसबुक पर माता-पिता को
भगवान से ज्यादा
वो ही लोग लिखते हैं
जिनके माता-पिता
दयनीय स्थिति में होने के बाद भी
उनसे आशा नहीं करते.
अपनी जेब से पैसा न देकर
माता-पिता से खेती , गाय, भैंस
घर का किराया, पिता की पेंशन
आदि की कमाई का हिसाब
अपनी पत्नी के सामने लेते हैं , तथा
उन्हें बहुत सुनाते हैं.
पत्नी भी उनमें कमी निकालकर
अपना धर्म पूरा करती है.
यह माजरा करीब 90% लोगों का है ,
जो शहर मे लोगों को जन्मदिन की
पार्टी देकर अपनी झूठी शान का
बखान करते हैं.
वो अपने पत्नी बच्चों के अलावा
किसी पर एक पैसा खर्च नहीं करते.
समाज सुधार की ओर
अग्रसर माना जा सकता है ?
गाँव के अधिकांश लोग
इसी तरह दुःखी हैं , क्योंकि
उनको बच्चे की नौकरी के कारण
वृद्ध पैंशन भी नहीं मिलती.
माँ-बाप कितने सपने संजोकर उन्हें
अपना पेट काटकर पढाते हैं.
फिर नौकरी या तो लगती नहीं या
लगने के बाद बेगाने होना दुःखद है.
आजकल लड़को की नौकरी लगे
या ना लगे , घर का काम तो
मरते दम तक
बूढों को ही करना पड़ता है.
यही पुरस्कार है जी.
जो लोग सोशल मीडिया पर
बड़ी बड़ी बातें करते हैं तथा
लोगों का आदर्श बने हुए हैं तथा
बड़े पदों पर आसीन हैं ,
उनमें से अनेक अपने रिश्तेदारों ,
माता-पिता के प्रति
निष्ठुर भाव रखते हैं.
#kinnarokasansar
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