'ऋग्वेद, मण्डल नं. 8, सूक्त नं. 33, मंत्र नं. 19' के ख़िलाफ़ कब बोला जाएगा: "अ॒धः प॑श्यस्व॒ मोपरि॑ संत॒रां पा॑द॒कौ ह॑र। मा ते॑ कशप्ल॒कौ दृ॑श॒न्त्स्त्री हि ब्र॒ह्मा ब॒भूवि॑थ॥" भावार्थ - स्त्री सदैव विनम्रता से आचरण करे, वह कभी उद्धत न हो, साथ ही लज्जा का भाव ले कर वह चले-फिरे, वह कभी निर्लज्ज न हो,वह चलते समय पैर फैला कर अथवा लम्बे-लम्बे डग भरकर न चले,बल्कि पैर सटा कर और छोटे छोटे डग भर कर चले ! उसके शरीर के सभी अवयव अच्छी प्रकार ढके रहें !
स्त्री का यदि कोई भाग खुला रहेगा,तो उसे देख कर पुरुषों के मन मे कुभाव जागेंगे तथा कामवासना उतपन्न होगी,अता स्त्री के शरीर के सभी अवयव ढके रहें इस मंत्र में स्त्रियों के लिए उत्तम उपदेश है। अंध भक्तो को अपनी धार्मिक किताब भी पढ़नी चाहिए, नेक बनो एक बनो ताकि देश आगे बढ़े।
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