सिखों से सबक :-सिखों ने एक दंगे से वो सीख लिया जो मुसलमान हज़ारों दंगे के बाद भी नहीं सीख पाए । 84 के दंगे के बाद सिखों ने अपने मसायल का हल राजनीति से नहीं, क़ानून और समाज से किया ।


भारत के हजारों दंगों में जितने मुसलमान बहुसंख्यकों के हाथों मरे उससे अधिक सिख केवल 1984 के आस पास के वक्त बहुसंख्यकों के हाथों मरे और बर्बाद हुए। उनके लिए "काबा" जैसे पवित्र स्थल पर बम बरसाकर बर्बाद कर दिया गया , पर वह इसका रोना कभी नहीं रोए।


पर सिखों ने कोर्ट में लड़ाई लड़ी , वह रोए नहीं कि बहुसंख्यकों ने उनपर ज़ुल्म किया। फूल्का जैसे मज़बूत आदमी ने अपनी पूरी ज़िंदगी क़ौम के नाम लगा दी। एक कोर्ट से दूसरे कोर्ट के चक्कर लगाते लगाते फूल्का बूढ़े हो गए, लेकिन लड़ते रहे । 


सिख भी उस वक्त की सरकार के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि उनके साथ कौन खड़ा है या कौन नहीं खड़ा है । जगदीश टाइटलर , सज्जन कुमार और एचकेएल भगत जैसे बड़े कांग्रेसियों का राजनीतिक केरियर सिखों ने कोर्ट के ज़रिए ख़त्म कर दिया । और हम धवन ,  सिब्बल के सहारे कोर्ट में लड़कर अपना हर मामला हारते रहे। हम एक मुसलमान वकील अपने लिए पैदा ना कर सके।


बहुसंख्यक समाज में अपने ख़िलाफ़ नफ़रत कम करने के लिए सिखों ने समाज सेवा का सहारा लिया।  मुल्क में जब भी कोई विपदा आयी , खालसा ऐड जैसी सामाजिक संस्था के कार्यकर्ता सबसे आगे दिखाई दिए । लंगर लगाए , दवाएं बांटी, परेशानी में लोग गुरुद्वारे की तरफ़ देखने लगे। 


दिल्ली जिसने 84 का दंश झेला था और जहां पर सिखों के छिपने की जगह नहीं मिल रही थी , वहाँ के गुरुद्वारे रोज़ हज़ारों लोगों को खाना खिला रहे हैं। सस्ते रेट पर वो दिल्ली वालों को दवा मुहैया करा रहे हैं । 


सिखों ने अपनी क़ौम को राजनीतिक तौर पर मज़बूत करने की नहीं सोची क्यूँकि उनसे गिनती आती है।। उन्हें पता है कि लोकतंत्र में जज़्बात नहीं वोटों की गिनती होती है लेकिन उन्होंने बाक़ी हर फ़ील्ड में अपनी क़ौम को इतना मज़बूत कर दिया कि उन्हें इग्नोर करना मुश्किल हो गया । यह उनकी ही ताक़त है कि कांग्रेस 1984 के बाद कभी बहुमत से सरकार नहीं बना पायी । 


मुसलमानो की तादाद सिखों से बहुत ज़्यादा है, लेकिन सियासी सोच ज़ीरो। वो सारा दिन चिल्लाते हैं कि उन पर ज़ुल्म हो रहा है। जबकि जानते है कि भाजपा की जीत का एकमात्र कारण यह है, कि बहुसंख्यक समझता है कि मुल्ले औक़ात में है । अब आप ही बताए कि आपके रोने से भाजपा मज़बूत होगी या कमज़ोर ?? 


मुसलमानो को एक अदद फूल्का की ज़रूरत है । जो कानूनन मुक़दमे लड़ने के लिए वकीलों की टीम बनाए। जब तक मॉब लिंचिंग या मस्जिद पर आक्रमण या दूसरे ऐसे अपराधों में शामिल लोगों पर क़ानूनी कार्यवाही नहीं होगी तब तक यह अपराध नहीं रुकेंगे । 


भाजपा शासित राज्यों में इन्हें सत्ता का समर्थन हासिल है लेकिन अगर वकीलों की एक टीम आपके पास होगी तो कोर्ट सुनेगी। कुछ मामलों में हो सकता है आपको कामयाबी ना मिले, या कामयाबी मिलने में वक्त लगे।  मगर थोड़े धैर्य से काम लें, अपनी एनर्जी राजनीति से हटाकर इधर लगाए तो एक ना एक दिन आप कामयाब ज़रूर होंगे। 


मस्जिदों , मज़ारों और मदरसो में देने वाली इमदाद का एक हिस्सा आप वकीलों की इस टीम को दीजिए जिससे लड़ाई लड़ने में फंड की कमी महसूस ना हो । 


पर आपके दिमाग़ में भर दिया गया है कि आपके मसायल का हल राजनीति के पास है। राजनीति कमज़ोर लोगों के साथ कभी इंसाफ़ नहीं करती । खुद को मज़बूत बनाइए , इतना मज़बूत कि आपके ऊपर हाथ उठाने से पहले सामने वाला 100 बार सोचे ।


समाज सेवा में लगिए जिसके लिए ख़ुद क़ुरान ने आपको हुक्म दिया है। कब तक रोते रहेंगे कि फ़लाँ आपके लिए बोला और फ़लाँ आपके लिए नहीं बोला ?? वोट की गिनती आपके फ़ेवर में ना कल थी , ना आज है और ना कल होगी।


जज़्बात से बाहर निकलिए , राजनीति से सिर्फ़ इतना मतलब रखिए कि आपको दुःख देने वाले या आपको अपना दुश्मन समझने वाले सत्ता में ना आ पाए । भाजपा के मुक़ाबले जो जीत रहा हो उसे चुपचाप बिना किसी उम्मीद के वोट करने के अलावा आपके पास कोई विकल्प ना कल था और ना आज है ।


मुसलमान-मुसलमान चिल्लाने से ही आपको नुक़सान हो रहा है ।अब रोना धोना ख़ुदा के वास्ते बंद कर दीजिए । सिखों से सबक लीजिए। कयादत से अधिक ज़रूरी सबक यह है , इसे अपनाइए।


✍ इब्न ए आदम की पोस्ट कुछ संसोधन के साथ

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