FBP/2020-0278 वरिष्ठ पत्रकार मौहम्मद जाहिद की कलम से एक सच।


मुस्लिम तुष्टीकरण :-


सभी दलों पर तुष्टीकरण का आरोप लगता रहा है। यही आरोप लगाकर संघ और भाजपा पिछले 60-70 सालों से देश के बहुसंख्यकों के एक वर्ग को यह समझाने में कामयाब हो गयी कि पिछले 70 सालों में देश की सरकारों ने केवल मुसलमानों का तुष्टीकरण किया है।


डाक्टर मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री रहते एक बार कहा था कि "देश के संसाधनों पर पहला हक देश के अल्पसंख्यकों का है" , संघ और भाजपा ने इस बयान को भी मुस्लिम तुष्टीकरण के दुष्प्रचार के लिए प्रयोग किया और इस बयान से "अल्पसंख्यक हटा कर मुसलमान" जोड़ दिया।


देश के 22•5 करोड़ वोटर्स को लगता है कि आज़ादी के बाद 70 सालों तक देश की सरकारों ने हिन्दुओं के लिए कुछ नहीं किया और यह केवल "मुस्लिम तुष्टीकरण" करती रहीं।


देश की आबादी में अशिक्षित अनपढ़ आबादी का हिस्सा बहुत बड़ा है। जिस देश में केवल अपना नाम लिखना ही साक्षरता का मापदंड हो उस देश के लोगों का मानसिक स्तर को समझा जा सकता है। और यह भी समझा जा सकता है कि "मुस्लिम तुष्टीकरण" को लेकर संघ क्युँ इनको समझाने में सफल रहा।


भारत में 2020 तक अपना नाम लिखने वाले मापदंड पर केवल 74 प्रतिशत लोग ही साक्षर हैं। 26 % लोग अभी भी अपना नाम तक नहीं लिख सकते। नवीनतम 2011 की जनगणना के अनुसार, मात्र 8.15% (68 लाख) भारतीय लोग स्नातक हैं।


संघ की कामयाबी का राज़ यहीं छिपा है।


यह लोग कैसे "मुस्लिम तुष्टीकरण" पर विश्वास कर लेते हैं यह हैरानी भरा सवाल है। सरकारों ने पिछले 70 सालों में मुसलमानों के लिए जो किया वह केवल राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री अथवा मंत्री द्वारा दी गयी "अफ्तार पार्टी" या "ईद पार्टी" रही , जिसमें तमाम संवैधानिक पदों पर बैठै लोग गोल टोपी पहन कर फोटो सेशन कराते दिखे। यही फोटो "संघ" के लिए "मुस्लिम तुष्टीकरण" का सबूत थे।


या फिर सरकारों ने "कब्रिस्तान" की चारदिवारी के लिए धन दिया , या मदरसे में एक दो अध्यापक को तनख्वाह दी। या उर्दू टीचर और उर्दू ट्रांस्लेटर के नाम पर केवल उत्तर प्रदेश में कुछ हजार लोगों को नौकरी दी। हज सब्सीडी के नाम पर अधिक यात्रा किराया दर रख कर पैसा "एयर इंडिया" को देती रही और मुसलमान "हज सब्सीडी" के नाम पर गाली खाता रहा।


"मुस्लिम" के नाम पर पिछले 70 साल के इतिहास में कुल जमा यही "तुष्टीकरण" हुआ है। इसका परिणाम भी जस्टिस राजेन्द्र सच्चर आयोग ने यह बता दिया कि


         "मुसलमानों की हालत दलितों से भी बदतर"


प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह ने अक्तूबर 2005 में न्यायधीश राजिंदर सच्चर के नेतृत्व में यह समिति बनाई थी।


यह रिपोर्ट ही देश के मुसलमानों के तुष्टीकरण के आरोपों को नंगा कर देती है। सात सदस्यीय सच्चर समिति ने देश के कई राज्यों में सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थानों से मिली जानकारी के आधार पर बनाई अपनी रिपोर्ट में देश में मुसलमानों की काफ़ी चिंताजनक तस्वीर पेश की।


जस्टिस सच्चर आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में मुसलमान समुदाय आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा के क्षेत्र में अन्य समुदायों के मुकाबले कहीं पिछड़ा है, इस समुदाय के पास शिक्षा के अवसरों की कमी है, सरकारी और निजी उद्योगों में भी उसकी आबादी के अनुपात के अनुसार उसका प्रतिनिधित्व काफ़ी कम है।


तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तब कहा था कि 


"सच्चर समिति की रिपोर्ट को संसद में पेश किया जाएगा जहां उस पर विस्तार से बहस होगी ताकि मुस्लिम समुदाय के विकास के लिए ऐसे कार्यक्रम बनाए जा सकें जिन पर आम सहमति हो"


जस्टिस सच्चर समिति के अनुसार मुसलमानों का प्रतिनिधित्व आबादी के अनुपात में काफ़ी कम है। देश में मुसलमानों की आबादी लगभग साढ़े पंद्रह प्रतिशत है वहीं सरकारी उच्च पदों में उनका प्रतिनिधित्व छह प्रतिशत से भी कम है।


चौदह ऐसे राज्य जहां मुसलमानों की संख्या अपेक्षाकृत ज़्यादा है वहां निचली अदालतों में उनका प्रतिशत आठ से भी कम है मगर देश के कई राज्यों की जेलों में मुस्लिम क़ैदियों की संख्या लगभग तीस से चालीस प्रतिशत तक है।


यही नहीं , जस्टिस सच्चर आयोग ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही मुसलमानों के संदर्भ में बढ़ती आर्थिक असमानता, सामाजिक असुरक्षा और अलगाव की भावना को रिपोर्ट के माध्यम से पहली बार उजागर करके तुष्टीकरण की पोल खोल दी है। और रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा कि 2001 में 13.8 करोड़ की मुस्लिम जनसंख्या की सरकारी सेवाओं, पुलिस, सेना और राजनीति में पर्याप्त भागीदारी नहीं है। अन्य भारतीयों की तुलना में मुसलमानों को अशिक्षित, गरीब और अस्वस्थ पाया गया। 


इसी रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि आवास और रोजगार के निजी क्षेत्रों में मुसलमानों के साथ होने वाले भेदभाव को रोका जाए। इसके लिए समान अवसर आयोग की स्थापना की जाए।


जस्टिस राजेन्द्र सच्चर आयोग ने जो सबसे महत्वपूर्ण रिपोर्ट दी वह भारत का वह काला सच है जिसका सामना देश को करना चाहिए। वह था संसद , विधानसभा और अन्य प्रतिनिधि सभाओं में मुस्लिम भागीदारी को कम करने की साजिश।


जस्टिस राजेन्द्र सच्चर ने निर्वाचन क्षेत्रों के अनुचित बंटवारे को भी रेखांकित किया गया था। इसके कारण मुस्लिम बहुल वाले निर्वाचन क्षेत्रों से भी मुसलमानों का उचित प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता है। विधानसभा में उनकी सीटों की संख्या कम करने का खेल खेला गया।


उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश को लिया जा सकता है। वहाँ पर बसी मुस्लिम जनसंख्या को देखते हुए निर्वाचन क्षेत्रों का उचित सीमांकन नहीं किया गया है। उल्टे, मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित की गई हैं। और जहाँ अनुसूचित जाति का बाहुल्य है, वे सीटें अनारक्षित हैं। अर्थात जहाँ जिस सीट पर मुसलमान निर्णायक स्थीति में है उसे रिजर्व कोटे में डाल दो।


जस्टिस सच्चर आयोग ने परिसीमन समिति से इसे ठीक करने की अपेक्षा की गई थी, लेकिन उसने सच्चर समिति की सिफारिश की अनदेखी कर दी।


यह है पिछले 70 सालों की मुस्लिम तुष्टीकरण की हकीकत।


यद्धपि मुस्लिम तुष्टीकरण के नाम पर पिछली सरकारों ने मुसलमानों को बहुत कुछ दिया भी है , मेरठ , मलियाना , हाशिमपुरा , संभल , मुजफ्फरनगर-1 , मुजफ्फरनगर-2 , मुरादाबाद , मुरादाबाद ईदगाह , बनारस , भागलपुर , कानपुर , मुंबई-1 , मुंबई-2 , मुंबई-3 , इत्यादि इत्यादि और अभी ताजा तरीन दिल्ली।


इसी तुष्टीकरण में मुसलमानों के कारोबार और दुकानों को जलाकर , घर में कमाने वालों को मारकर उनकी कमर तोड़ दी।


यह तो शुक्र है , अलीगढ मुस्लिम युनिवर्सिटी और जामिया का जिसने मुसलमानों को डिग्री दी और फिर शुक्र है मिडिल ईस्ट के देशों का जिसने मुसलमानों को रोज़गार दिया और वह कुछ इस कदर बेहतर हैं कि जस्टिस सच्चर को वह "दलितों से ही बदतर" लगे , जानवरों से बदतर नहीं।


कल जस्टिस सच्चर का जन्मदिन था , सब तो छोड़िए मुसलमान ही भूल गये।


जस्टिस सच्चर को श्रृद्धांजली और शुक्रिया , इस देश को मुस्लिम तुष्टीकरण के जवाब में एक दस्तावेज देने के लिए।

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