दुनिया के पहले मोबाइल का बुनियादी काम सिर्फ कॉल करवाना था.....

 


इस में कोई दूसरा आप्शन न था.... फिर एस एम एस एड हुआ.... फिर इंटरनेट.... फिर दुनिया की हर चीज़ को मोबाइल में शिफ्ट कर दिया गया.... आज मोबाइल से दुनिया का शायद ही कोई ऐसा काम हो जो न लिया जा रहा हो.....


मगर यह मोबाइल आज भी अपना बुनियादी काम नहीं भूला....


आप कोई गेम खेल रहे हों, या फिल्म देख रहे हों, इंटरनेट सर्फिंग कर रहे हों, या विडियो बना रहे हों अलगर्ज़ एक वक़्त में दस काम भी कर रहे हों.....


तो जैसे ही कोई कॉल आए मोबाइल फौरन से पहले सबकुछ छोड़ कर आपको बताता है कि कॉल आ रही है यह सुन लें, वह अपने सारे काम रोक लेता है....


और एक इंसान जिसे अल्लाह ने अपनी इबादत के लिए पैदा फरमाया और सारी कायनात को उसकी खिदमत के लिए सजा दिया, वह अल्लाह की कॉल पर दिन में कितनी बार अपने काम रोक कर मस्जिद जाता है...????


मस्जिद जाना तो दरकिनार अब अल्लाह की कॉल यानी आज़ान पर हम अपनी गुफ्तगू भी रोकना मुनासिब नहीं समझते, इबादत हर इंसान और नमाज़ हर मुसलमान की ज़िन्दगी का बुनियादी जुज़ है जिसकी मौत तक किसी सूरत में माफी नहीं....


काश हम मोबाइल से इतना सा ही सबक़ सीख लें जिसे हमने खुद इजाद किया और एक लम्हा भी खुद से जुदा नहीं करते कि दुनिया के सब ही जायज़ काम करो मगर अपनी पैदाइश का बुनियादी मकसद अल्लाह की इबादत कभी न भूलो.... "आज़ान होते ही सबकुछ रोक कर मस्जिद चलो और अल्लाह की कॉल पर लब्बैक कहो"

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