क्योंकि इन्होंने एक बेहद गंभीर कोरोना मरीज़ की जान बचाने के लिए एम्बुलेंस के अंदर अपनी PPE किट हटाकर उसे मुंह से कृत्रिम श्वास दी। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो मरीज को उसी वक़्त कार्डियक अरेस्ट हो सकता था। उसकी जान जा सकती थी।
जब ये बात कश्मीर में बैठे इनके पिता को पता चली तो उन्होंने फ़ोन करते हुए कहा कि, "ज़ाहिद अगर कोरोना से तुम्हारी मौत हो जाती है तो मैं शोक नहीं मनाऊँगा, समझूँगा कि मेरा बेटा एक मरीज़ की जान बचाने के लिए शहीद हो गया"।
इसके जवाब में ज़ाहिद ने बस इतना कहा - "अब्बा आज आपने मन से बोझ उतार दिया"।
ढेरों सलाम, इस फरिश्ते को, उस बाप को जिसने बेटे को मानव सेवा के लिए मजबूत किया ।
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