कोरोना को lightly लेते हुए, ईद / बाजार में खरीददारी के लिए बाहर निकलने वालों के लिए हक़ीक़त पेश है

 

एक दिन...................
अचानक बुख़ार आता है, 
गले में दर्द होता है, 
साँस लेने में तकलीफ होती है, 
Covid टेस्ट किया जाता है, 
3 दिन तनाव में बीतते हैं...
अब टेस्ट +ve आने पर--
रिपोर्ट नगर पालिका जाती है
रिपोर्ट से हॉस्पिटल तय होता है
फिर एम्बुलेंस मोहल्ले में आती है, 
पड़ोसी खिड़की से झाँक कर देखते हैं, 
कुछ एक की हमदर्दी साथ है, 
कुछ मन ही मन हँस रहे होते हैं

एम्बुलेंस वाले आप को रोज़ाना इस्तेमाल के कपड़े रखने का कहते हैं...
बेचारे घर वाले जी भर कर देख भी नहीं पाते हैं, 
आँखों से आँसू बोल रहे होते हैं...
तभी...
"चलो जल्दी बैठो" आवाज़ दी जाती है,
एम्बुलेंस का दरवाजा बन्द...
सायरन बजाते रवानगी...
14 दिन पेट के बल सोने को कहा जाता है... 
बस ज़िंदा रखने लायक खाना दो वक्त मिलता है...
Tv, mobile सब गायब हो जाते हैं...
सामने की दीवार पर माज़ी, और मुस्तकबिल के नजारे दिखने लगते हैं...
अब
ठीक हो गए... तो ठीक... वो भी जब 3 टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव आ जाएँ... तो घर वापसी... 
मगर
ठीक ना हुए तो...  
लाश को प्लास्टिक में लपेट करके सीधे कब्रिस्तान...

शायद अपनों को आप का अखिरी दीदार भी नसीब नहीं होगा...
कोई नमाज़ जनाज़ा भी नहीं...
सिर्फ
घर वालों को एक डेथ सर्टिफिकेट
और....खेल खत्म
 
इसीलिए,

बेवजह की खरीददारी को बाहर मत निकलिए...
घर में महफूज़ रहिए...

सिंवई, बिरयानी, नए कपड़े की ज़िद और हर खतरे को हल्के में लेने की आदत छोड़िये... 
ज़िन्दगी बेशकीमती है... ज़िन्दा रहे तो आगे आने वाली ईदों में ख्वाहिशात पूरी कर लेना ۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔
 

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