त्योहारों की परंपराएं सदियों से विश्व में चली आ रही हैं जिससे बलिदान त्याग संस्कृति पवित्र धर्म ग्रंथों का उल्लेख भाईचारा एकता तरक्की का संदेश मिलता है औलिया पैगंबर देवी देवता अवतार महापुरुष शूरवीर के नामों से हजारों त्योहार हर साल मनाए जाते हैं (ईद उल अजहा ) त्योहारों में से एक है 21/7/ 2021 देश में मनाया जा रहा है बकरा ईद मनाने का मुख्य उद्देश्य बुद्धिजीवियों के अलग-अलग मतों द्वारा दर्शाया गया है ! चंद बिंदुओं को समझने की कोशिश करते हैं (ईद उल अजहा )मुस्लिम समुदाय का महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है इस्लाम धर्म की मान्यता अनुसार पवित्र रमजान माह की समाप्ति के 70 दिन बाद इस्लामी कैलेंडर का 12 वा आखरी महीना होता है वास्तविक चांद देखने पर 10 तारीख को ईद मनाई जाती है
पैगंबर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने अपने इकलौते बेटे हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम को अल्लाह की राह में कुर्बान किया था इसी उद्देश्य से (ईद उल अजहा )का त्यौहार मनाया जाता है
बकरीद के दिन मस्जिदों व ईदगाह मैं नमाज अदा करने के साथ ईद मनाने की शुरुआत होती है ईद का त्यौहार अपने अनुयायियों को खुशी के मौके पर गरीबों को भी नहीं भूलने की सीख मिलती है आपसी मनमुटाव को समाप्त करती है कुर्बानी का गोश्त शरीयत के मुताबिक तीन हिस्सों में तक्सीम किया जाता है रिश्तेदारों व दोस्तों व गरीबों में यह सिलसिला 3 दिन तक चलता है
कुर्बानी के लिए जानवरों को सालों पहले पाल पोस कर बड़ा किया जाता है उनकी देखरेख सुचारू रूप से होती है जो पूरी तरह से स्वस्थ होना चाहिए तथा जानवर में परिवार के प्रति प्यार की भावना होनी चाहिए कुछ मुस्लिम महीने पहले कुर्बानी के लिए अच्छे स्वस्थ जानवर ऊंची कीमत में खरीद कर लाते हैं जिनमें मुख्य बकरा दुंबा भैंसा ऊंट होते हैं प्रतिबंधित जानवरों की कुर्बानी जायज नहीं है
इस्लाम धर्म की मान्यता के अनुसार आखरी पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब दुनिया में तशरीफ लाए उनके आने से पहले इस्लाम की लोकप्रियता ज्यादा नहीं थी हजरत मोहम्मद साहब ने पूर्ण रूप धारण परंपराएं तरीके से दुनिया में फैलाई मोहम्मद साहब से पहले 1 लाख 24 हजार पैगंबर धरती पर आए इन्हीं में से हजरत इब्राहिम थे इन्हीं के दौर से कुर्बानी का सिलसिला शुरू हुआ
इब्राहिम लगभग 80 साल की उम्र में पिता बने उनके इकलौते बेटे इस्माइल का जन्म हुआ हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बेइंतहा प्यार करते थे हजरत इस्माइल की मां इब्राहिम को पूरा सम्मान देती थी हर सुख दुख में साथ खड़ी रही उस समय कबीलाई का दौर था इब्राहिम व हाजरा का जीवन अल्लाह के नियम पर चलकर कठिन परिस्थितियों से गुजरा अल्लाह ताला के हुक्म के अनुसार मक्का के नजदीक रेगिस्तान में हजरत हाजरा हजरत इस्माइल को पैगंबर इब्राहिम दोनों को छोड़ आए थे छोटी उम्र में रेगिस्थान पहाड़ों के बीच इस्माइल पानी के बगैर तड़प रहे थे मां हाजरा पानी के लिए इधर-उधर दौड़ रही थी अल्लाह ताला से दुआ मांगी और दुआ कबूल हुई
हजरत इस्माइल एड़ी जमीन पर मार रहे थे अल्लाह ताला का हुक्म हुआ जमीन से पानी की फुहार निकली मां और बेटे ने प्यास बुझाई जिसे ( आबे जमजम) कहा जाता है 12 साल की उम्र इस्माइल की होने पर पैगंबर इब्राहिम को ख्वाब में अल्लाह के यहां से फरमान आया बंदे कुर्बानी दे बारी बारी से बहुत सारे जानवरों को अल्लाह की राह में कुर्बान कर दिया लेकिन ख्वाब बंद नहीं हुआ इब्राहीम ने अपनी दूसरी बेगम हजरत सायरा से इसका जिक्र किया और बताया ख्वाब में सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने का संदेश मिल रहा है तो बेगम हाजरा बेटे इस्माइल जहां रहते थे पैगंबर इब्राहिम वहां गए उन्होंने ख्वाब के बारे में बताया तो मां और बेटे ने अल्लाह की राह में कुर्बान होने के लिए सहमति दे दी
इस्माइल को इब्राहिम पहाड़ों की तरफ ले गए बताया जाता है वहां कोई दरिया का किनारा था हजरत इस्माइल की सहमति से हजरत इब्राहिम ने अपनी आंखों से पट्टी बांधकर छूरी गर्दन पर चलाने को तैयार हुए तो हजरत जिब्राइल फरिश्ते ने अल्लाह ताला को पैगाम भेजा अल्लाह ताला ने आदेश दिया दुंबा को बेटे की जगह कर दिया जाए
दुंबा की आवाज से पैगंबर इब्राहिम नाराज हो गए और छूरी को गुस्से में फेंका ऊपर उड़ती हुई टीडी को लगी बहते हुए दरिया में मछली को लगी हदीस में 3 निशानियां अल्लाह की राह में कुर्बानी की बताई जाती हैं
अल्लाह पाक के यहां से कुर्बानी मंजूर हो गई बताया जाता है अल्लाह पाक के आदेश अनुसार हजरत जिब्राइल फरिश्ते द्वारा पैगंबर इब्राहिम पैगंबर इस्माइल के द्वारा मक्का मस्जिद का निर्माण हुआ उसके बाद पैगंबर इब्राहिम दुनिया से रुखसती कर गए और हजरत इस्माइल 135 साल की उम्र में मक्का मदीना से दुनिया को अलविदा कह गए
अगर गहराई से समझा जाए तो बलिदान के किस्से हर जाति धर्म में पाए जाते हैं पैगंबर इब्राहिम व पैगंबर इस्माइल की कहानी= राजा मोरध्वज व तावरध्वज से मेल खाती नजर आती है जिसमें भगवान श्री कृष्ण जी और अर्जुन माया रूपी शेर बना कर साधु के भेष में राजा मोरध्वज के दरबार में अलख जगाई थी
त्याग बलिदान आपसी सौहार्द (ईद उल अजहा )पवित्र त्यौहार के शुभ अवसर पर सभी देशवासियों को दिली मुबारकबाद !!
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