16 अप्रैल को जब लॉकडाउन लगाया था, तब प्रतिदिन 6 हजार संक्रमित मरीजों का आंकड़ा था, आज 17 हजार के पार है। आखिर क्यों नहीं हो रहा है लॉकडाउन का असर? झूठे सरकारी आंकड़ों के अनुसार भी प्रतिदिन 150 संक्रमित मरीजों की मौत हो रही है।
राजस्थान में गत 16 अप्रैल से संपूर्ण लॉकडाउन लगा हुआ है। सिर्फ किराना की दुकानें और दूध, सब्जी फल आदि को ही सुबह 6 से 11 बजे तक खुलने की अनुमति है। शादी ब्याह में पहले ही 31 सदस्यों की संख्या सीमित है। लॉकडाउन में जो लोग बेवजह घूमते हैं उन्हें सरकारी क्वारंटीन सेंटरों में बंद रखा जा रहा है। मास्क नहीं लगाने वाले और दुकानों पर भीड़ करने के आरोपियों से जुर्माना वसूला जा रहा है। शिक्षण संस्थाओं से लेकर धार्मिक स्थल तक बंद हैं। इतनी सख्ती के बाद भी सरकार का मानना है कि कोरोना संक्रमण बढ़ने के पीछे लोगों की लापरवाही ही है।
इसलिए अब लॉकडाउन में और सख्ती की जाएगी। सवाल उठता है कि क्या सरकार कितनी सख्ती करेगी? मेहनतकश लोगों का रोजगार छीन चुका है। दो वक्त की रोटी के लाले पड़ गए हैं। जो लोग संक्रमित हो रहे हैं उन्हें सरकारी अस्पतालों में जगह नहीं मिल रही है। ऐसी तरकीब लगाई जा रही है जिससे भर्ती होने से पहले ही मरीज की मौत हो जाए। अस्पताल में वेंटीलेटर बेड, ऑक्सीजन आदि भी नहीं है। अब तो ऑक्सीजन सिलेंडर के रेगुलेटर भी नहीं मिल रहे हैं। प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत संक्रमित हैं। गहलोत का कहना है कि हम सभी मरीजों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं करवा सकते। प्रदेश के हालात बद से बदतर हैं। 16 अप्रैल को लॉकडाउन लगाने के बाद सरकार दो बार लॉकडाउन की गाइड लाइन को सख्त कर चुकी है। अब सख्त करने को कुछ भी नहीं रहा है। सरकार सिर्फ अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए नौटंकी कर रही है। 16 अप्रैल को जब लॉकडाउन लगाया था, तब प्रतिदिन संक्रमित मरीज 6 हजार प्रतिदिन मिल रहे थे, लेकिन 21 दिन बाद यह आंकड़ा 17 हजार के पार
पहुंच गया है। सवाल उठता है कि आखिर लॉकडाउन का असर क्यों नहीं हो रहा? देखा जाए तो लॉकडाउन की अवधि में संक्रमण तेजी से बढ़ा है। संक्रमित व्यक्तियों की मौत पर सरकार के झूठे सरकारी आंकड़ों को भी सही माना जाए तो प्रदेश में प्रतिदिन 150 व्यक्तियों की कोरोना से मौत हो रही है। लॉकडाउन की अवधि में 5 हजार संक्रमित व्यक्तियों की मौत होना बताया जा रहा है। अब कहा जा रहा है कि कोरोना की तीसरी लहर भी आएगी। अच्छा हो कि सरकार अपने अस्पतालों की दुर्दशा को सुधारे। चिकित्सक और स्वास्थ्य कर्मी तो अपनी जान जोखिम में डालकर काम कर रहे हैं। लेकिन साधन उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी तो सरकार की है। सरकार ऐसी व्यवस्था करें जिससे मरीजों का समुचित इलाज हो सके।
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