आइए समझते हैं कैसे किसान विरोधी तीन कानून देश के किसान की कमर तोड़कर उनको गुलाम बनाने के लिए और जनता की रसोई को महंगा कर कॉरपोरेट की जेबें भरने के लिए डिजाइन किए गए हैं...


अडानी और अम्बानी रिटेल में घुसे, उनकी गिद्ध जैसी नजर देश के खाद्यान्न बाजार पर पड़ी। लेकिन किसान और कृषि हितों में पहले की सरकारों द्वारा बनाये गए कुछ कानून इन कॉरपोरेट के आड़े आ रहे थे जो किसान और उपभोक्ता हित में थे और इन कॉरपोरेट के लिए समस्या पैदा कर रहे थे।


◆ कॉरपोरेट समस्या 1. चूँकि कृषि समवर्ती विषय है तो इसपर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं, ऐसे में विभिन्न राज्यों में विभिन्न नियम कायदे थे किसानों से फसल खरीदने के लिए। तो यह इन कॉरपोरेट के लिए कठिन था इतने राज्यों में अलग अलग नियम कायदों का पालन करना।


● मोदी का समाधान: राज्यों के अधिकार को हड़पते हुए पूरे देश के लिए एक एक्ट बना दिया। कॉरपोरेट खुश।


◆ कॉरपोरेट समस्या 2: कॉरपोरेट पूरे देश के किसानों से खाद्यान्न खरीदेंगे और स्टोर करेंगे लेकिन पूर्व की सरकारों द्वारा जमाखोरी रोकने के लिये जमाखोरी विरोधी कानून जिसको essential commodity act (आवश्यक वस्तु अधिनियम) कहा जाता है आड़े आ रहा था, जो की इन कॉरपोरेट को कोई भी खाद्यान्न अधिक मात्रा में लंबे समय तक स्टोर जमाखोरी करने पर रोक लगाता है चूँकि इससे खाद्यान्नों के दाम बाज़ार में बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं।


● मोदी का समाधान: Essential commodity act (आवश्यक वस्तु अधिनियम) खत्म, अब खाद्यान्न की जमाखोरी कितनी भी मात्रा तक और कितने भी समय तक करना अपराध नहीं रह गया। कॉरपोरेट पुनः प्रसन्न।


◆ कॉरपोरेट समस्या 3: लेकिन किसान तो फसल अपने हिसाब से और अपनी मर्जी से उगाते हैं, इसलिए ये बड़ा मुश्किल है कि किस प्रकार की फसल किसान उगाएगा।


● मोदी का समाधान: कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का एक्ट बना दिया जिससे किसान को अब कॉन्ट्रेक्ट में बांध कर कॉरपोरेट निर्देशित करेगा की कौन से प्रकार की फसल किसान को उगानी है।


◆ कॉरपोरेट समस्या 4: यदि कॉरपोरेट किसान को धोखा देंगे, पेमेंट समय पर नहीं करेंगे, उल्टे सीधे नियम कायदे थोपेंगे जिससे धोखा खाने वाला किसान कोर्ट में जायेगा, तो कॉरपोरेट को पूरे देश में बहुत से मुकदमे झेलने पड़ेंगे।


● मोदी का समाधान: किसान कोर्ट में नहीं जा सकेंगे, वे केवल SDM या DC के पास जा सकेंगे, कोरपोरेट पुनः खुश क्योंकि रिश्वतखोर SDM और DC जो नेताओं के इशारे ओर चलते हैं उनको मैनेज करना बहुत आसान है क्योंकि कॉरपोरेट इलेक्टोरल बाँड से पोलिटिकल पार्टियों के चन्दा देते हैं और कोई भी SDM और DC अपनी राज्य सरकार के इशारों के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं करेगा।

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