मध्यप्रदेश के उज्जैन और मंदसौर के एक गांव में राम मंदिर के नाम पर चंदा मांगने के लिये जुलूस निकाला जा रहा था। जुलूस में मुसलमानों को आतंकित करने वाले नारे, और ‘गाने’ बजा रहे थे।

 


इस पर मुस्लिम समाज ने आपत्ति दर्ज कराई, बात बढ़ी और पथराव तक जा पहुंची। यह घटना उज्जैन की है, इसके बाद पुलिस और सरकार ने पथराव के ‘आरोपियों’ के मकानों पर बुल्डोजर चला दिया। दर्जनों को गिरफ्तार किया गया, कईयों पर रासुका लगाई गई। ऐसा ही मंदसौर में हुआ वहां मुस्लिम आबादी वाले एक गांव पर पड़ोस के गांवों से आए भगवाधारियों ने हमला किया,मस्जिद पर हमला किया, मीनार पर भगवा फहरा दिया। मध्यप्रदेश में लंबे समय से शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री रहे हैं, उनकी छवी एक औसत ‘सेक्यूलर’ नेता की रही है। लेकिन मार्च 


2020 में फिर से मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवराज पूरी तरह सांप्रदायिक हो गए हैं। क्या उन्हें इसी शर्त पर मुख्यमंत्री बनाया गया है कि वह नफरत की सियासत करें? इसका जवाब तो मुख्यमंत्री खुद जानते होंगे। लेकिन अहम सवाल मुसलमानों को आतंकित करने का है, उनकी इबादतगाहों पर दंगाईयों के हमले और घरों पर चले बुल्डोजर का है। इस तरह की कार्रावाई प्रधानमंत्री के उस दावे की पोल खोल रही है जिसमें उन्होंने सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास का दावा किया था। लेकिन देखने में यह आया है कि 2019 में दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद भाजपा शासित राज्यों की सरकारों का नज़रिया पूरी तरह बदल चुका है। अब शिवराज सिंह चौहान ‘मामा’ से ‘योगी’ बनने की ओर अग्रसर हैं।


मंदसौर, उज्जैन में जिस तरह मध्यप्रदेश पुलिस ने कार्रावाई की है वह साफ इशारा कर रही है, भाजपा शासित राज्यों का सरकारी तंत्र मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिका स्वीकार कर चुका है। कैसी विडंबना है कि पुलिस की मौजूदगी में भगवाधारी दंगाई मस्जिद पर भगवा लगा रहे हैं, और तोड़ फोड़ कर रहे हैं। लेकिन पुलिस मूक दर्शक बनी खड़ी है। जब कार्रावाई की बात आई तो गिरफ्तारियां भी पीड़ित समुदाय के लोगों की हुईं, उन्हीं के निर्माण को अवैध बताकर तोड़ दिया गया, रासुका लगाकर जेल में डाल दिया गया। गिरफ्तारियों का सिलसिला अभी थमा नहीं है। इतना तो तय है कि दिल्ली की तरह मध्यप्रदेश में भी एक ही समुदाय को निशाना बनाया जाएगा। ऐसा कब और कहां होता है? ऐसा सिर्फ वहीं होता है जहां एक वर्ग विशेष सुपरमैसी से ग्रस्त हो जाए और दूसरे समुदाय को अपना गुलाम समझना शुरु कर दे। संघ परिवार और ह्वाटसप यूनिवर्सिटी ने एक बहुत वर्ग के (जिसमें पुलिस प्रशासन भी शामिल है) मस्तिष्क में बैठा दिया है कि यह देश हिंदुओं का है, और यहां


हिंदू ही राज करेगा। यहां पर रहने वाले धार्मिक अल्पसंख्यक विशेषकर मुसलमान, हिंदुओं के रहमो करम पर हैं, वे हिंदुओं के टैक्स के पैसे पर पलते हैं, वग़ैरा वग़ैरा....। इसीलिये राजनीतिक महत्वकांक्षा के लिये नफरत की सियासत करने वाली भाजपा के पारंपरिक वोट बैंक के साथ साथ पुलिस प्रशासन में भी ऐसी मानसिकता का तेजी से उदय हुआ है, जो मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक मानती है। इस मानसिकता के पतन इतना आसान नही है इसमें कमसे कम 20 साल का समय लगना है। या आप यूं समझ लीजिये कि अगले 20 वर्षों भारतीय मुसलमान पर भारी हैं।



फिलहाल के लिये मुसलमानों के पास खुद को दंगाईयों से बचाने के दो उपाय हैं। पहला यह कि वे जहां जिन बस्तियों में इक्का दुक्का रह रहे हैं वहां से पलायन करें और ‘अपनों’ के बीच जा बसें। दूसरा यह कि वे उस बस्ती के लोगों के साथ डायलॉग करें और उनसे इस बात की ज़मानत लें कि कल अगर ‘बाहर’ के दंगाई हमारे घरों पर हमला करते हैं, हमारी इबादतगाहों पर हमला करते हैं तब आपको हमारी ढ़ाल बनना होगा। बाकी पुलिस प्रशासन, सरकार से न्याय और निष्पक्षता की उम्मीद न करें, और न इस भरोसे रहें कि पुलिस सुरक्षा करेगी, क्योंकि पुलिस सरकार की नीति की अनुयायी होती है।

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