तुमको देखकर कुछ याद आता है


मैं जब भी देखता हूं

तुम्हारी आंख के सपने 

पवन शीतल सुगंधित सी

मुझे मदहोश करती है

मेरा हर रोम पुलकित है

कि इन सपनों में मैं भी हूं 

मगर जाने क्यों अक्सर ही

 ये सपना टूट जाता है 

जरा ठहरो कि तुमको देखकर कुछ याद आता है  


तुम्हारे साथ चलता हूं

तो ये महसूस होता हैं

कि जैसे सूर्य,बादल,चाँद तारे

पवन,नदियां सब नजारे 

साथ मेरे चल रहे हो 

मै उड़ता हूँ हवाओं में

मेरा मन डगमगाता है

जरा ठहरो कि तुमको देखकर कुछ याद आता है 


मैं पागल बन भटकता हूं

तुम्हारी खोज में हरदम

तलाशी किरणों की ली है

की खुशबू में भी जासूसी

मगर महसूस होता है

कि मुझको देखकर शायद

कहीं पर छिप गई हो तुम

भला छुप-छुप के किस्मत से

 कोई कब भाग पाता है

 जरा ठहरो कि तुम को देखकर  कुछ याद आता है 


वो स्मृतियां उभरने दो

कि जब तुम पास होती थी 

मेरे हंसने पर हंसती थी

मेरे रोने पे रोती थी 

अकेला आज मैं बैठा हूं

तेरी यादों से बोलता हूं

यही कहता हूं जब बादल

गगन पर आ के छाता है

जरा ठहरो कि तुमको देखकर कुछ याद आता है


प्रेस पत्रकार कृष्ण पाल सिंह उत्तर प्रदेश दुगौर लखनऊ कवि लेखक व रचनाकार 

मो.न. 8808560778

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